-वीरेन्द्र देव गौड़, पत्रकार, देहरादून
असम में पानी की बाढ़ है और महाराष्ट्र में राजनीति की। राजनीति की इस बाढ़ में ऐसे लोगों को खतरा है जो देश के लिए नहीं खुद के लिए जीते हैं। महाराष्ट्र में चला गठबंधन अवसरवादी था। लिहाजा, इसका बिखरना कोई चौकाने वाली घटना नहीं है। जो लोग देश के लिए सोचना जानते हैं उन्हें पता था कि यह गठबंधन टूटेगा। शिंदे सेना सूझबूझ के साथ आगे बढ़ रही है। वह गरमागरमी में कोई कदम नहीं उठाना चाहती। शिंदे सेना संजय राउत वाली गरमागरमी से बचते हुए परपक्व सोच का परिचय दे रही है। शिंदे सेना को पता है कि उद्धव गुट को जितना थकाया जाएगा उतना ही देश को उनकी कमियों का पता लगेगा। देश के हिसाब से यह बहुत अच्छी नीति है। इसमें दो राय नहीं कि कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस को हिन्दुत्व से कोई लेना देना नहीं। अब समय आ गया है कि हिन्दुत्व के पक्षधर सामने आकर लड़ाई लड़ें। छिप कर लड़ाई लड़ने से अब कोई लाभ नहीं। हिन्दू है तो भारत है। हिन्दू नहीं तो भारत समाप्त। शायद, इसीलिए एकनाथ शिंदे के प्रति समर्थन बढ़ता ही जा रहा है। उद्धव वाली शिवसेना इस बाढ़ से त्रस्त है। उधर शिंदे गुवाहाटी के होटल में चेस खेल कर उद्धव को यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि हारी हुई बाजी के लिए संघर्ष कोई मायने नहीं रखता। इधर मुम्बई में संजय राउत वीर रस में आकर शिंदे को चेता रहे हैं कि वे अभी भी बाज आ जाएं वरना कहीं के नहीं रहेंगे। यह बंदर घुड़की है या विश्वास की ललकार, यह आने वाले कुछ दिनों में स्पष्ट हो जाएगा। अब तो शिवसेना का मूल आधार ही दरकने लगा है। मुम्बई महानगर निगम के पार्षद भी शिंदे के पक्ष में बाहर निकल रहे हैं। 18 में से 10 से अधिक सांसद भी शिंदे के पक्ष में खड़े दिखाई दे रहे हैं। शिवसेना में आई इस बाढ़ को भला अब कौन बचा पाएगा। इतना होने के बावजूद उद्धव अकड़ रहे हैं। वे कह रहे हैं कि ठाकरे परिवार के नाम को छोड़ कर राजनीति करके बताओ तो जानें। यानी उद्धव ठाकरे ललकार लगा रहे हैं कि शिंदे ठाकरे परिवार के दम पर उछल रहे हैं। ठाकरे परिवार के बिना उनकी कोई अहमियत नहीं। ऐसे वक्तव्यों से शिंदे पक्ष का और अधिक चौकन्ना होना स्वभाविक है। अब शिंदे पक्ष और अधिक ताकत से उद्धव के अस्तव्यस्त पक्ष को चुनौती देगा। शिंदे सेना की ताकत का लगातार बढ़ना इस बात का संकेत है कि जुलाई के आते-आते महाराष्ट्र में भाजपा नेतृत्व की सरकार बन जाएगी। लेकिन इससे पहले मुम्बई में कुछ अप्रिय घटनाएं घट सकती हैं। दोनों पक्षोें के घायल शिवसैनिक आपस में भिडेंगे जरूर। यह भिड़न्त मुम्बई के माहौल को खराब करेगी। यह समुद्र मंथन देश के हित में होगा। परन्तु लोकतंत्र के अन्दर सत्ता के लिए गाली गलौज और खूनी संघर्ष दुर्भाग्यपूर्ण ही होगा।