-सावित्री पुत्र वीर झुग्गीवाला (वीरेन्द्र देव), पत्रकार,देहरादून
राजू श्रीवास्तव जैसा हास्य अभिनेता मिल पाना संभव नहीं लगता। उनकी जगह कोई नहीं भर सकता। गजोधर बाबू यानी राजू श्रीवास्तव जीवन और मौत से जूझते हुए निकल गए इस दुनिया से। अबकी बार वे जिस ऑटो पर सवार थे वह अदृश्य था। जो ऑटो वे संघर्ष के दौरान चलाते थे वह दिखाई देता था। जिस ऑटो पर सवार होकर वे चले गए वह ऑटो इस दुनिया में नहीं बना था। राजू ने हास्य कला के साथ-साथ अभिनय कला में भी दक्षता हासिल की। राजू के अंदर विद्वता मौजूद थी। वे कभी-कभी ऐसी बातें करते थे जो किसी विद्वान के लिए संभव होता है। एक अच्छे हास्य अभिनेता के सारे गुण उनके अंदर मौजूद थे। वे अभिनय भी बहुत अच्छा करते थे। इसके अलावा राजू के अंदर देश प्रेम कूट-कूट कर भरा था। ये सभी गुण किसी एक आदमी के अंदर होना किसी चमत्कार से कम नहीं। ऐसा चमत्कारी व्यक्ति हमारे बीच नहीं रहा। यह बहुत दुख की बात है। मात्र 58 साल की आयु में राजू श्रीवास्तव हमें छोड़कर चले गए। व्यक्तियों के क्रिया-कलापों पर उनकी गहरी नजर रहती थी। वे मनोविज्ञान के भी पारखी थे। मनोविज्ञान को समझे बिना उनके जैसी हास्य कला हासिल कर पाना संभव ही नहीं है। इन गुणों के साथ-साथ एक भावुक व्यक्ति थे। वे दयावान व्यक्ति थे। उनके अंदर संवेदनशीलता का अपार भंडार था। सफलता की चोटी पर पहुँचने के लिए राजू को भी कड़ी मेहनत करनी पड़ी। उनकी मेहनत और आत्मविश्वास उनकी सफलता का आधार था। राजू श्रीवास्तव में कोई कमी नहीं थी। बस, अगर उनमें कोई कमी थी शायद यह कि वे अपने स्वास्थ्य का ध्यान नहीं रख पाए। राजू श्रीवास्तव के स्तर का संवेदनशील व्यक्ति और हास्य अभिनेता मिल पाना संभव नहीं लगता। इनके पिता कवि थे और इनका एक मकान किदवई नगर कानपुर में भी है।