Friday, June 20, 2025
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अभिनेत्री मेधा शंकर और अभिनेता अविनाश तिवारी पहुँचे परमार्थ निकेतन

ऋषिकेश ( राव शहजाद ) । प्रसिद्ध अभिनेत्री मेधा शंकर और अभिनेता अविनाश तिवारी का परमार्थ निकेतन में आगमन हुआ है । दोनों कलाकारों ने विश्वविख्यात गंगा आरती में सहभाग किया और आरती की दिव्यता व भव्यता से अभिभूत हो उठे। परमार्थ निकेतन की आध्यात्मिक ऊर्जा, शांत वातावरण और संस्कृति-संरक्षण के प्रयासों से वे गहराई से प्रभावित हुए। स्वामी चिदानन्द सरस्वती से भेंट कर उन्होंने आध्यात्मिक जीवन और पर्यावरणीय सरोकारों पर चर्चा की और अपनी जिज्ञासाओं का समाधान प्राप्त किया। गंगा तट पर आरती की ज्योति, मंत्रों की गूंज और आस्था के इस अनुपम दृश्य ने उनके हृदय को गद्गद कर दिया । अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि आज का दिन हमारी सांस्कृतिक विरासत, इतिहास और जीवन मूल्यों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए समर्पित है। संग्रहालय केवल पुरानी वस्तुओं, कलाकृतियों या ऐतिहासिक धरोहरों का भंडार नहीं हैं, बल्कि वे हमारी सभ्यता, धर्म, संस्कार और संस्कृति के जीवित दर्पण हैं। आज के आधुनिक और तेजी से बदलते युग में, जब हमारी सांस्कृतिक विविधता और पहचान कई चुनौतियों का सामना कर रही है, तब संग्रहालय हमें उनका दर्शन कराते हैं।संग्रहालय हमें हमारे पूर्वजों की अमूल्य धरोहर से जोड़ते हैं। वे हमारी संस्कृति, धर्म और जीवन मूल्यों को संरक्षित रखते हुए हमें इतिहास की गहराई से अवगत कराते हैं। संग्रहालयों में रखी गई कलाकृतियां, दस्तावेज, मूर्तियां, चित्र और शिलालेख हमारे अतीत की कहानियां कहते हैं, जो हमें अपनी जड़ों से जोड़ती हैं। जब हम इन धरोहरों को देखते हैं, तो हम केवल अतीत की वस्तुओं को नहीं देखते, बल्कि अपने धर्म, संस्कार और जीवन के मूल्यों को समझते और आत्मसात कर सकते हैं। हमारा धर्म और संस्कृति हमारे जीवन की नींव हैं। वे हमें जीवन के मार्गदर्शन, नैतिकता, और सामाजिक एकता का पाठ पढ़ाते हैं। यदि हम इन मूल्यों को भूल गए या छोड़ दिया, तो हमारी पहचान खो जाएगी इसलिए संग्रहालयों का संरक्षण केवल वस्तुओं की सुरक्षा नहीं, बल्कि हमारे जीवन के संस्कारों और धर्म की रक्षा करना भी है ।आज के वैश्वीकरण और तकनीकी युग में, हमारी सांस्कृतिक विविधता संकट में है। युवा पीढ़ी में कई बार अपनी सांस्कृतिक जड़ों के प्रति उदासीनता देखने को मिलती है। ऐसे में संग्रहालय और सांस्कृतिक संस्थान हमारी संस्कृति के दूत बनकर कार्य करते हैं। वे हमें याद दिलाते हैं कि हमारी परंपराएं और धर्म ही हमारी पहचान हैं। अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस के इस अवसर पर हम सबको यह संकल्प लेना होगा कि हम अपनी सांस्कृतिक विरासत को न केवल संग्रहालयों तक सीमित रखेंगे, बल्कि इसे अपने दैनिक जीवन का अभिन्न हिस्सा बनाएंगे। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारी आने वाली पीढ़ियां भी इस विरासत को समझें, अपनाएं और बढ़ावा दें। धरोहरों की रक्षा करना केवल इतिहास की रक्षा नहीं, बल्कि हमारे संस्कारों और जीवन मूल्यों की रक्षा करना है। यह हमारी सामाजिक एकता, सांस्कृतिक समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति का आधार है।

 

अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस पर आइए हम सब मिलकर अपने धर्म, संस्कृति और जीवन मूल्यों की इस अमूल्य धरोहर को संजोने और संरक्षित करने का संकल्प लें। संग्रहालय हमारी आत्मा के दर्पण हैं, जो हमें अपने इतिहास से जोड़ते हैं और हमारे भविष्य को उज्ज्वल करते हैं। धरोहरों की रक्षा, संस्कारों की रक्षा है। यही हमारा धर्म है, यही हमारी संस्कृति है, और यही हमारा जीवन है। मौके पर फिल्म प्रोड्यूसर विनोद बच्चन , प्रसिद्ध मानस कथा वाचक मुरलीधर , अरूण सारस्वत सहित अन्य मौजूद रहे।

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