क्या फिर सिलेंडर के लिए दर-दर की ठोकरें खानी पड़ेंगी
-वीरेन्द्र देव गौड, पत्रकार, देहरादून
मनमोहन राज में हमें सिलेंडर के लिए दर-दर की ठोकरे खानी पड़ती थीं। तब उत्तराखण्ड में भी कांग्रेस की सरकार हुआ करती थी। रात दो बजे बिस्तर छोड़कर लोग अंधेरे में ही खाली सिलेंडर लेकर निकल पड़ते थे। तब जाकर सुबह 10 बजे तक 8 घंटे की कड़ी तपस्या के बाद सिलेंडर मिलता था। कभी-कभी तो 8 घंटे की तपस्या के बाद भी खाली सिलेंडर लेकर घर वापस लौटना पड़ता था। सिलेंडर पाने के लिए अजीबोगरीब तिकड़में भिड़ानी पड़ती थीं। सिलेंडर की गाड़ी के पीछे-पीछे दौड़ो तो छू-मंतर हो जाती थी। रोटी खाना मुश्किल हो गया था। यह एक बानगी है कांग्रेस राज की। भले ही सिलेंडर सप्लाई में राज्य सरकार बदलने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। फिर भी सिलेंडर की कालाबजारी का वह मनमोहनी युग दहशत पैदा करता है। लोग शायद वे दिन भूल गए। क्योंकि अब तो सिलेंडर वाले गेट खड़खड़ाकर पूछते है कि- क्या आपका सिलेंडर खाली है। भ्रष्टाचार भाजपा के राज में भी है उत्तराखण्ड में किन्तु कांग्रेसी भ्रष्टाचार की बेलगाम-बेहयाई तो जग प्रसिद्ध है। कांग्रेस राज में जात-पात और मजहबवाद बेलगाम होकर अपनी पराकाष्ठा को पार कर जाता है। अगर उत्तराखण्ड में कांग्रेस की सरकार आती है तो यह राज्य डबल इंजन वाली खासियत से वंचित रह जाएगा। कांग्रेस अपनी पाँच साल की भूख मिटाने में पूरा पाँच साल गँवा देगी। फिर घर का बुद्धू लौट के आया वाली कहावत साकार होगी और फिर पाँच साल बाद भाजपा की सरकार आएगी। वाह रे उत्तराखण्ड। क्या तू कोरोना काल का श्राप भाजपा को देगा जिसकी बदौलत तू अपनी जान बचा पाया।