-वीरेन्द्र देव गौड़, पत्रकार, देहरादून
जिन्हें मदरसे चलाने की तमन्ना है उन्हें 1947 में पाकिस्तान चला जाना चाहिए था। किसने रोका था। रूकने की भी अहसान हम पर ही रख रहे हो। तुम्हें शरिया पसन्द था तो तुम्हें वहीं होना चाहिए था। भारत में शरिया की कोई औकात नहीं। समय रहते समझ जाओ। इसमें तुम्हारी भलाई है। इस देश में शिक्षा की दो व्यवस्थाएं क्यों। शिक्षा को संविधान की केन्द्रीय सूची में रखा जाना चाहिए था। यह एक षड़यंत्र के तहत ऐसा किया गया कि शिक्षा राज्य की सूची में है। शिक्षा केवल केन्द की सूची में रखे जाने लायक विषय है। शिक्षा किसी भी देश की जड़ होती है। आपने जड़ को ही राज्यों के पाले में डाल दिया। यह जानते हुए भी देश में ऐसे कई राज्य हें जो भाषा को लेकर वनमानुषों की तरह लड़ते हैं। इससे स्पष्ट है कि शिक्षा को केन्द्रीय सूची में ना रखना षड़यंत्र है। हमारे देश का पहला केन्द्रीय सूचना मंत्री विशुद्ध रूप से जिहादी था। वह अपने दुराग्रह के अनुसार जिहाद की जड़ें मजबूत करके चला गया। अब समय आ गया है कि भारतीय मुख्यधारा वाली शिक्षा पूरे देश में लागू हो। अपनी-अपनी मर्जी से नहीं। ये लोकतंत्र है या मजाकतंत्र। बहुत मजाक हो चुका। बहुत डर लिए जिहादियों से। अब देश के सब मदरसों को बंद कीजिए। अल्पसंख्यक आयोग भंग कीजिए। ये सब जिहाद के अड्डे हैं। देश बचाना है। देश को अफगानिस्तान नहीं बनाना है तो ये सब करना ही पड़ेगा। मदरसों में केवल जिहाद की घुट्टी पिलाई जाती है। जिहाद की घुट्टी के इन पालनों को समाप्त कर दो। वरना, हिन्दू समाप्त हो जाएगा। हिन्दू के समाप्त होते ही लोकतंत्र समाप्त हो जाएगा। भारत में लोकतंत्र तभी तक जिंदा है जब तक हिन्दू बहुसंख्यक है। हिन्दू के बहुसंख्यक रहते जिहादी रोज-रोज जिहाद का ताण्डव कर रहे हैं। इनकी सभी चेष्टाएं जिहाद पर केन्द्रित हैं। ये जिहाद के बिना जीवित नहीं रह सकते। इस्लाम की देन केवल एक ही है और वह है जिहाद। कृपया वोट के चक्कर में देश के भविष्य को तहस-नहस मत कीजिए। मदरसों को तो तत्काल बंद कीजिए। अगर इन्हें देश के सरकारी और गैर सरकारी विद्यालयों पर भरोसा नहीं है तो इन्हें वह कर देना चाहिए जो इन्हें 1947 में करना चाहिए था। अर्थात् इन्हें चाँद तारे वाले मुल्क के साये में चला जाना चाहिए। इनकी बड़ी मेहरबानी होगी।
मदरसे बंद क्यों नहीं कर देते
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