-सावित्री पुत्र वीर झुग्गीवाला (वीरेन्द्र देव गौड़), पत्रकार,देहरादून
दो मत नहीं कि भारत में एक मजहब की दादागिरी चल रही है। इस मजहब को संविधान का भी वरदहस्त प्राप्त है। कानून को लागू करने वाले भी इनके प्रति नरमी दिखाते हैं। नतीजा यह है कि मजहब की दादागिरी चल रही है। यह दादागिरी छल जिहाद के रूप में फल-फूल रही है। छल से हिन्दू लड़कियों को फाँसना और फिर प्रताड़ित करना और इस्लाम अपनाने के लिए मजबूर करना। ऐसी सैकड़ों वारदातें भारत में प्रति वर्ष हो रही हैं। हिन्दू नारी शक्ति का यह शोषण हर हाल में रूकना चाहिए। अपनी इच्छा से खुशी-खशी कोई नारी किसी अन्य धर्म को अपनाती है तो इसमें किसी को कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए। किन्तु, छल जिहाद का जो वहशी रूप सामने है उसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। न्यायालय में जज बन कर बैठे लोग प्रमाण मांगते है। इन्हें तो स्वतः संज्ञान लेना चाहिए। क्या ये लोग समाज का हिस्सा नहीं हैं। क्या ये लोग आँखें मूँदे बैठे रहते हैं। जो भी हो उत्तराखण्ड भी छल जिहाद की लू में झुलस रहा है। पुष्कर सिंह धामी की सरकार ने कैबिनेट के फैसले को लागू कर दिया है। यह नया धर्म स्वतंत्रता कानून बहुत सख्त तो नहीं है लेकिन चलिए कुछ तो किया धामी सरकार ने। इसके अनुसार अब छल जिहादी को 10 साल की सजा और 50 हजार के जुर्माने का प्राविधान है। सवाल यह है कि अदालतों में ऐसे मामलातों में सिद्ध नहीं कर पाते हैं पीड़िता के वकील कि उसके साथ छल जिहाद हुआ है। भारत में कोई भी सरकार हिम्मत नहीं जुटा रही है कि वह जिहाद को परिभाषित करे। जब तक जिहाद परिभाषित नहीं होगा तब तक इस भीषण समस्या का समाधान नहीं होगा। जिहाद ही जिहादी आतंक है। किसी नारी के जीवन को तबाह कर देना क्या आतंक नहीं है। वह भी अपने मजहब के नाम पर। भारत सरकार भी इस मामले में हिम्मत नहीं जुटा रही है। आप कानून को कितना भी सख्त कर लें जिहादी अपना काम करते रहेंगे क्योंकि पूरी की पूरी व्यवस्था उनके पक्ष में खड़ी है। जब तक जिहाद यानी जिहादी आतंक पर ईमानदारी से चर्चा नहीं होगी और जिहाद को परिभाषित करने के बाद कानून बनेगा तब जाकर हिन्दू नारियों से हो रहा छल जिहाद रूकेगा। रूकेगा ही नहीं बल्कि समाप्त हो जाएगा। इस सब के बावजूद धामी सरकार के अधूरे प्रयास के लिए धामी सरकार को धन्यवाद।