जय-जय माँ शाकुम्बरी देवी
शिवालिक पर्वत के सिंहासन पर
हरे मखमली आसन पर
माता ने दरबार लगाया है
माता के दर्शन की आस में भक्तों का मेला आया है।
उमड़ पड़े हैं भक्त सवेरे
भूल के बन्धन तेरे मेरे
तोड़ के तृष्णाओं के फेरे
भज रहे हैं माई-माई
बहार भक्ति की आई
कण-कण गूँज रही है घाटी
माँ शाकुम्बरी के श्री चरणों की माटी
जयकारों की धूम मची है
घंटे घड़ियालों का छाया है संगीत
क्या बच्चे क्या बड़े सभी के मुँह में
माता शाकुम्बरी की महिमा के हैं गीत।
जय-जय माँ शाकुम्बरी माई
भक्ति तेरी हमें खींच लाई
शक्ति तेरी माँ जग में समाई
जय-जय माँ आदिशक्ति हम तेरे बालक
तेरे बच्चे हम तेरे प्रचारक
शक्ति स्वरूपा माँ दो शक्ति
अजर अमर हो माँ तेरे श्री चरणों में भक्ति।
प्रेरक–महंत अनुपमानंद गिरी महाराज, व्यास शिवोहम बाबा और एम0एस0 चौहान, पत्रकार
रचनाकार-सावित्री पुत्र वीर झुग्गीवाला (वीरेन्द्र देव गौड़, पत्रकार, मो0 9528727656)