-सावित्री पुत्र वीर झुग्गीवाला (वीरेन्द्र देव), पत्रकार,देहरादून
सीतामढ़ी, बिहार के अंकित तूने वही किया जो एक पराक्रमी हिन्दू को करना चाहिए। तूने जिहादियों का जबरदस्त मुकाबला किया। तू डरा नहीं। तूने जिहादियों को डरा दिया। कायर भीड़ ने अगर साथ दिया होता तो सबके सब जिहादी पकड़े जा सकते थे। परन्तु, दोस्त तूने पराक्रम में कोई कसर नहीं छोड़ी। तेरा जैसा नौजवान ही हिन्दू नौजवान को जगा सकता है। तू अभय है। कई चाकू के वार खाने के बाद भी तू तना रहा। तू लड़खड़ाया नहीं। तू संघर्ष करता रहा। दोस्त जिहादी कायर होते हैं। वे चाकू के लेकर आते हैं। वे भीड़ बन कर आते हैं। उनमें पराक्रम नहीं क्रूरता होती है। हमें इस क्रूरता का इलाज करना है। उन्हें क्रूरता के साथ-साथ काइयाँपन सिखाया जाता है। इसलिए वे पराक्रमी हो नहीं सकते। दोस्त, जल्लाद और पराक्रमी में फर्क होता है। जल्लाद निष्ठुर होता है जबकि पराक्रमी दयावान होता है। लेकिन हमें अपनी दया की भावना पर नियंत्रण रखना होगा। हमारा मुकाबला जिहादियों से है। कोई भी सरकार जिहादियों से लड़ने को तैयार नहीं। अब हम हिन्दुओं को स्वयं जिहादियों से मुकाबले को तैयार होना होगा। हमें उनके आक्रमणों का सटीक जवाब देना होगा। हमें भागना नहीं है। तेरी तरह लड़ना है। तूने दोस्त दिल जीत लिया। अगर मैं करोड़पति होता तो जिस अस्पताल में तेरा इलाज चल रहा है। वहीं आकर तूझे पाँच करोड़ रूपये भेंट करता। यही नहीं तुझे अपने साथ भी रखता। ताकि मैं और तू जिहादियों का मुकाबला करते। तू पराक्रमी है। इलाज पूरा हो जाने के बाद तुझे और बलवान होना पड़ेगा। भारत के नौजवान हिन्दुओं को तुझसे शिक्षा लेनी चाहिए। बॉस, मैं अपनी किताब में कभी न कभी एक कविता तुझ पर समर्पित करूंगा। तू मेरे लिए किसी मोदी से कम नहीं।