बुर्के का हो समाघान मचा हुआ है घमासान
पश्चिम उत्तर प्रदेश के रूहेलखण्ड क्षेत्र में बुर्का विवाद मतदान विवाद में तब्दील हो गया। इसका पुख्ता प्रमाण है पुलिस के द्वारा दो महिलाओं को बुर्का बंद होकर रंगे हाथ फर्जी मतदान करने की कोशिश करते हुए धर दबोचना । इसमें दो राय नहीं कि पश्चिम उत्तर प्रदेश के दोनों चरणों में मतदान पर जातपात और मजहबवाद ने अपना असर दिखाया है। यह तथ्य भी समय-समय पर वाद-विवाद में आता रहा है कि बुर्के का कुछ लोग गलत इस्तेमाल करते हैं। बुर्का पहन कर गैर कानूनी काम करते हुए न केवल नारियों को बल्कि नरों को भी कई बार पकड़ा गया है। यह हकीकत देश और विदेश दोनों के लिए सही कही जा सकती है। गूगल पर सर्च करने पर ये प्रमाण आसानी से हासिल हो जाते हैं। खैर, मतदान की प्रक्रिया में बुर्के का गैर कानूनी प्रयोग चिंता का विषय है। क्या मतदान के दौरान बुर्के को तिरोहित किया जा सकता है। यह विषय चर्चा में आना चाहिए। चुनाव आयोग को इस विषय पर गंभीरता से सोचना चाहिए। अदालतों को भी इस मुद्दे पर पहल करनी चाहिए। संविधान को तो सर्वोपर्रि मानना ही पड़ेगा। यह किसी की पसंद या ना पसंद का सवाल नहीं है। बुर्का पहनना मुस्लिम महिलाओं का अधिकार है लेकिन किसी संस्थान में प्रवेश के लिए ड्रेस का कोड़ होता है। जिसका पालन सबको करना होता है। ड्रेस के कोड़ के सामने सब बराबर हैं। ठीक उसी तरह जिस तरह भारतीय दंड संहिता के समक्ष सब बराबर हैं। इसीलिए तो भारत में समान नागरिक संहिता होना बहुत जरूरी है। -वीरेन्द्र देव गौड, पत्रकार, देहरादून।