टिकैत नाम का व्यक्ति अगर किसान होता तो किसान आवारागर्द नहीं होता है। इस आदमी को आवारागर्दी की आदत पड़ चुकी है। आंदोलन उसे कहते हैं जो भलाई के लिए किया जाता है। उसे आंदोलन नहीं कहते जो लड़ाई के लिए किया जाता है। लड़ाई करना आवारागर्दी का ही काम होता है। आवारागर्द यह भी नहीं समझ पाते कि वे देश से लड़ रहे हैं या देश के लिए लड़ रहे हैं। उन्हें तो केवल खुद को लड़ाई में दिखाना है। यही है चरित्र टिकैत का। टिकैत चरित्र केवल और केवल मोदी विरोध पर केन्द्रित है। मोदी विरोधी जब हार जाते हैं मोदी से तो वे ऐसे ही आवारागर्दों का सहारा लेते हैं। क्योेंकि अच्छे काम तो अच्छाई के रास्ते से होते हैं। किसी को काम करने से रोकना है तो बुरे लोगों की जरूरत पड़ती है। उत्तर प्रदेश के लोगों ने टिकैत को उसकी क्षमता का परिचय करा दिया है। फिर भी यह आदमी उछल कूद से बाज नहीं आ रहा है। क्या हमारे देश का किसान विश्व बिरादरी से कट कर किसानी कर सकता है नहीं कर सकता। अगर किसी बड़े किसान को विदेशों में अपना अनाज बेचना है तो क्या वह दूसरे देशों से लड़ाई करके ऐसा करेगा। दूसरे देशों से मिलजुल कर चलेगा तभी तो वह व्यापार कर पाएगा। अगर भारत के किसानों को आत्मनिर्भर होना है तो टिकैत जैसे फालतू लोगों का विरोध करना पड़ेगा। चुप रह कर काम नहीं चलेगा। चुप रहने से ऐसे आवारागर्दाें का दुस्साहस बढ़ जाता है और फिर ये लोग भस्मासुर की भूमिका निभाने लगते हैं। इस आदमी को पिछले चुनाव में जवाब मिल चुका है। किन्तु ऐसा लगता है कि इसे पढ़े लिखों की भाषा समझ में आती नहीं। यह आदमी प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी की भलाई का गलत लाभ उठा रहा है। अब यह योगी जी के खिलाफ मोर्चे तैयार करवा रहा है। यह आदमी ऐसे लोगों के हाथों में खेल रहा है जो इस देश से नफरत करते हैं। इस आदमी की जाँच होनी चाहिए। इसकी संपत्ति की जाँच होनी चाहिए। आंदोलन गाहे-बगाहे जब मनचाहे नहीं होते। आंदोलन सृजन के लिए होते हैं। आंदोलन अफरातफरी मचाने के लिए नहीं होते। इसे तो आवारागर्दी कहते हैं।
किसान आन्दोलन या आवारागर्दी
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