-सावित्री पुत्र वीर झुग्गीवाला (वीरेन्द्र देव), पत्रकार, देहरादून
हरिद्वार में भोले के भक्त चारों दिशाओं से तूफान बन कर आ रहे हैं। हरिद्वार की जमीन भोले के भक्त काँवाड़ियों के लिए बहुत छोटी पड़ गई है। तमाम कष्ट सहने के बावजूद भोले के भक्त उफ तक नहीं कर रहे हैं। इसे भक्ति का ज्वार कहा जाए या भक्ति का उमड़ता भाव। बीते रविवार के दिन हरिद्वार में भक्तों की भीड़ ने बाढ़ का रूप ले लिया था। ऐसी बाढ़ जिसमें व्यवस्था ढ़ीली पड़ गई। वैसे तो भोले के भक्त कुछ गलत नहीं कर रहे थे। वे तो एक-दूसरे को सहयोग कर रहे थे। लेकिन भक्तों की बहुत बड़ी संख्या के सामने सब कुछ बेबस हो गया था। इसके बावजूद कोई झगड़ा नहीं। कोई तमाशा नहीं। कोई हंगामा नहीं। कोई लड़ाई-झगड़ा नहीं। सब कुछ शांति से चल रहा था। कम से कम हरिद्वार शहर में तो काँवड़िए संयम का परिचय दे रहे थे। हरिद्वार पहुँचने की वाले काँवड़िए रास्तों में कहीं-कहीं उदंडता अवश्य दिखा रहे थे। जाम होने की सूरत में दाँए-बाँए से निकलने की कोशिश कर रहे थे। इसे अगर उदंडता माना जाए तो इसमें कुछ गलत भी नहीं है। बाकी, जो लोग गुजरे इतवार के दिन हरिद्वार में थे। जो हरिद्वार में घूम-फिर रहे थे। लेखक भी उनमें से एक था। ऐसे लोग दावा कर सकते हैं कि भोले नाथ कृपा से हरिद्वार में शांति थी। जबकि काँवड़ियों का समुद्र जहाँ-तहाँ लहरा रहा था। काँवड़िए पसीने से लथ-पथ थे लेकिन उनके चेहरे पर किसी तरह का आक्रोश नहीं था। वे भोले-भोले चिल्लाकर अपनी परेशानियों को नजर अंदाज कर रहे थे। इसे भोले नाथ की कृपा ही तो समझा जाएगा।