शिवाजी महाराज का हिन्दवी स्वराज
वीरेन्द्र देव गौड़
शिवाजी महाराज ने केवल 15 साल की आयु में हिन्दवी स्वराज का प्रण लिया था। इस प्रण पर वे अन्तिम साँस तक डटे रहे। शिवाजी महाराज ने श्रीराम और महाराणा प्रताप से शिक्षा लेकर ऐसे लोगों को अपना पहला सैनिक बनाया जिन्हें कोई पूछता ही नहीं था। ये लोेग मावले कहलाते थे। ये मावले सह्याद्रि पर्वत मालाओं में निवास करते थे। इनका पेशा खेती था। ये ही शिवाजी महाराज की पहली सेना थे। भगवान राम ने वानरों और रीछों की सेना बनायी थी। महाराणा प्रताप ने अरावली पर्वत मालाओं और कन्दराओं में रहने वाले भीलोें की सेना बनाकर हल्दी घाटी का युद्ध लड़ा था। शिवाजी ने मावलों की सहायता से बीजापुर सल्तनत के कई किले जीत लिए थे। औरंगजेब के सिंहासन की चूलें हिलने लगी थीं जब शिवाजी एक-एक कर उसके सेनापतियों और सूबेदारों को अपनी तलवार का पानी चढ़ा रहे थे। जब औरंगजेब का कोई सरदार और सेनापति शिवाजी का कुछ न बिगाड़ सका तो उसने अपने अन्तिम हथियार के रूप में मिर्जा राजा जयसिंह को 90 हजार सेना के साथ शिवाजी को ठिकाने लगाने के लिए रवाना किया। वह खुद शिवाजी से मोर्चा लेने की बात से ही थर्रा उठता था। शिवाजी महाराज ने बचपन में बहुत संघर्ष किया। उन्हें पाँच साल तक अपनी माता से दूर रहना पड़ा। यह वह कालखण्ड था जब माता जीजा बाई मुगलों की कैद में थी। पिता शाह जी भोंसले बीजापुर सुल्तान के दरबारी थे। शिवाजी ने दर्जनों किले जीत लिए थे और वे हिन्दवी स्वराज की जड़े जमा रहे थे। उन्होंने सचेत किया था कि अंग्रेज भारत के लिए बहुत खतरनाक सिद्ध होंगे। वे अंग्रेजों की फितरत से वाकिफ थे। डच और पुर्तगीज से भी शिवाजी महाराज सावधान रहते थे। उन्हें दबाने का कोई मौका नहीं गंवाते थे। सच तो यह कि मुगलों के साथ-साथ अंग्रेज, डच और पुर्तगाली शिवाजी महाराज से भयभीत रहते थे। अपने जीवन के अन्तिम वर्षों में शिवाजी महाराज को अपने घर के अन्दर के मतभेदों से बहुत गहरी ठेस पहुँची थी। वे अपने गुरु समर्थ रामदास को बहुत मानते थे। शिवाजी महाराज एक राजा होते हुए भी साधारण व्यक्ति की तरह ही जीवन व्यतीत करते थे। वे अध्यात्म के प्रति गहरा रूझान रखते थे। जब देश को उनके पौरूष की जरूरत थी तब वे छोटी सी आयु में इस दुनिया से चले गए। केवल 50 साल की आयु में महान देश भक्त जीजा बाई जी का यह सुपुत्र हिन्दवी स्वराज के निर्माण को पूरा किए बिना चल बसा। हालाँकि, मराठों ने हिन्दवी स्वराज की लड़ाई जारी रखी किन्तु शिवाजी महाराज जैसे विराट व्यक्तित्व की कमी सदा खलती रही।