-वीरेन्द्र देव गौड़, पत्रकार, देहरादून
साभार-नेशनल वार्ता ब्यूरो-
भारत में जिहाद का कानून चल रहा है। पहले जानलेवा पत्थर चलाओ। पत्थरबाजों के साथ बाकायदा पत्थर लदी ठेलियाँ चलती हैं। पाँच-पाँच घंटे हिन्दुओं पर पत्थर जिहाद चलता है। पुलिस को लाचार कर दिया जाता है। पुलिस को लौट जाने का आदेश दिया जाता है। जब पत्थर जिहादियों की धऱपकड़ की जाती है तो धमकी जिहाद का सिलसिला शुरू हो जाता है। भारत में यही ट्रेन्ड चल रहा है। कानपुर का यतीमखाना चौराहा इलाका इस जिहाद की ताजी कड़ी है। जुम्मे की नमाज बड़ी खतरनाक साबित हो रही है। जुम्मे की नमाज के बाद इस्लामी मजहब के लोग आग बबूला हो जाया करते हैं। अपनी इस आग को ठण्डा करने के लिए पत्थर जिहाद चलाया जाता है। बस इन्हें एक थोड़ा सा बहाना चाहिए। इस बार नूपुर शर्मा बहाना बन कर सामने आयीं। आप, ज्ञानवापी के शिवलिंग पर वजू करें। साढ़े तीन सौ साल यह करते रहें। हाथ पैर और मुँह की गन्दगी शिवलिंग पर थूकते रहें। भगवान त्रिलोचन का घनघोर अपमान करते रहें। इसके बावजूद हिन्दू कोई फतवा जारी नहीं करता। यह हिन्दू की सहनशक्ति की पराकाष्ठा है। यह पराकाष्ठा अब कायरता में बदल चुकी है। इसी का फायदा आप लोग उठा रहे हैं। तुम्हारे पूजनीय तो पूजनीय हैं मगर हमारे पूजनीय बेइज्जत किए जाने लायक हैं। वाह रे इस्लामी अंदाज। सचमुच हिन्दू को अगर अपनी आने वाली पीढ़ियों को बचाना है तो उसे आक्रामक होना पड़ेगा। आक्रामक का जवाब आक्रामक ही होता है। ठीक उसी तरह जैसे लोहे को लोहा काटता है। यही प्रकृति का नियम भी है। लेकिन हम हिन्दू प्रकृति के खिलाफ जा रहे हैं। हम समझ नहीं पा रहे हैं कि आखिर जुम्मा जिहाद है क्या। हमें इस जुम्मा जिहाद को समझना ही होगा। सन् 1946 में जिहादी जिन्ना ने डायरेक्ट एक्शनडे का ऐलान किया था। जिसके तहत जुम्मे की नमाज के बाद ही तब के बंगाल में यानी आज के पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश में जिहाद का कहर बरपाया गया था। तब भी हिन्दू झुक गया। नेहरू झुक गया। बापू चुप रह गया। देश टूट गया। बहरहाल, कानपुर मेें जुम्मा जिहाद के बाद अब मौलवी और काजी पुलिस और शासन प्रशासन को धमका रहे हैं। वे कह रहे हैं कि उन्हें अब कफन बांधकर निकलना पड़ेगा। तुम्हें यह वस्तु मुबारक। किन्तु, उत्तर प्रदेश यानी रामकृष्ण प्रदेश में बबुआ या बबुआ के साथी नकली गांधी परिवार का राज नहीं है। वहाँ एक योगी का राज है। यानी रामराज है। तुम्हें इस कुकृत्य के लिए यानी जघन्य अपराध के लिए कीमत तो चुकानी ही होगी।