दुधली के जंगल से एक साधू के
चरण कमल देहरादून विराजे
ऋषिपर्णा नदी के किनारे ऋषिवर ने
कुटिया अपनी छोटी सी जमाई
पुण्य आत्माओं ने आश्रम के खातिर
उन्नीस सौ अट्ठावन में भूमि दिलाई
धुनी रमाई धुनी रमाई
काया साधु ने अपनी गलाई
कठोर योगबल से महाराज ने
परमेश्वर से दूरी मिटाई
परमारथ से महर्षि ने दूर-दूर तक ख्याति पाई
सुनो रे साधु सुनो रे सज्जन
महाराज की पुण्य स्थली की पावन माटी से
सुबह-शाम तुम तिलक लगाओ
गुरु तेगबहादुर मार्ग पवित्र धाम पर आकर
सागर गिरि आश्रम में शीश नवाओ
पुण्य पाओ पुण्य पाओ धन्य हो जाओ
पूज्य जूना अखाड़ा के अमर संत की गुण गाथा गाओ
इस तपस्थली की अध्यात्म शक्ति का
भक्तो भरपूर लाभ उठाओ।
रचनाकार-सावित्री पुत्र वीर झुग्गीवाला (वीरेन्द्र देव गौड़), पत्रकार,देहरादून