Thursday, November 21, 2024
HomeUncategorizedपरीक्षा पर चर्चा की चर्चा

परीक्षा पर चर्चा की चर्चा

-वीरेन्द्र देव गौड़ एवं एम एस चौहान

साभार-नेशनल वार्ता न्यूज

परीक्षा पर चर्चा एक मुहावरा बन गया है। सभी लोग चाहते हैं कि देश का युवा तनाव मुक्त होकर परीक्षा दे और सफलता हासिल करे। अच्छी बात है कि सयाने और जानकार ऐसा कर रहे हैं। लेकिन समस्या की जड़ को तलाशना भी जरूरी है। विद्या यानी Education तो अनगिनत लोग हासिल करते हैं लेकिन उसके साथ योग पर ध्यान देना भूल जाते हैं। विद्या तभी सफल होती है जब उसका आधार योग हो। योग का मूल अर्थ प्रयास होता है। जब विद्या हासिल करने वाला सतत प्रयास करता है तब विद्या ग्रहण की जा सकती है। इस तरह ग्रहण की गई शिक्षा ही प्रतियोगिताओं में विद्यार्थी को सफल बनाती है। निरन्तर प्रयास करने वाला कभी तनाव में नहीं आता। तनाव में वही आता है जो विद्या प्राप्त तो कर रहा है लेकिन उसे ग्रहण नहीं कर पा रहा है। ऐसी स्थिति में उसके मन में यह बात रहती है कि वह विद्यार्थी तो है लेकिन वह कुछ सीख नहीं पा रहा है। यहीं से तनाव पैदा होता है। यहीं से हीन भावना पैदा होती है। इस हीन भावना के लिए वही व्यक्ति जिम्मेदार है जो स्वयं को विद्यार्थी कह रहा है। साधारण परीक्षा हो या प्रतियोगिता परीक्षा हो, दोनो स्थितियों में योग का बराबर महत्व होता है। चाहे आप कोई भी गणित लगा लीजिए बिना योग के कुछ नहीं होता। लगातार प्रयास करने से यानी योग से तनाव दूर रहता है। मन में विश्वास भरा होता है। यह विश्वास प्रतियोगी को सफलता दिलाता है। इतना अवश्य है कि किसी भी प्रतियोगिता के लिए योजना यानी strategy की आवश्यता होती है । जितनी अच्छी strategy होगी सफलता भी उतनी अच्छी होगी। बात घूम फिर कर योग पर आ जाती है। जो छात्र या छात्रा निरन्तर अभ्यास में जुटे रहते हैं वे खुद ही समझ जाते हैं कि उन्हें कैसी strategy बनानी है। strategy का ही हिस्सा है योग। तनाव में आने वाले विद्यार्थी यानी परीक्षार्थी योग के अभाव में तनाव की गिरफ्त में आ जाते हैं। अच्छे अघ्यापक की यही खूबी होती है कि वह साधारण विद्यार्थी को भी तनाव से बचा लेता है। ऐसा अध्यापक वही होता है जो अध्यापन को लेकर समर्पित हो। समर्पित अध्यापक एक ऐसा साधन है जिसका कोई जवाब नहीं। यदि विद्यार्थी तनाव के चक्रव्यू में फंस रहे हैं तो इसके लिए अध्यापक भी दोषी होते हैं। अच्छा अध्यापक जटिल से जटिल विषय को सरल बना कर प्रस्तुत कर देता है। ऐसी स्थिति में साधारण विद्यार्थी भी रूचि लेने लगता है। जब हम विद्यार्थियों में तनाव की बात करते हैं तो अध्यापक की कड़ी को भी बहस में लाना चाहिए। तभी समस्या का समाधान होगा अन्यथा नहीं। भले ही अभिभावक विद्यार्थी को कितना भी Support करें लेकिन जब तक अध्यापक समर्पित नहीं होंगे तब तक हम विद्यार्थियों को तनाव से मुक्त नहीं कर पाएंगे। परीक्षा पर चर्चा होनी चाहिए परन्तु इसमें भी ईमानदारी हो। यदि ऐसी किसी चर्चा में अध्यापक वर्ग को जरूरी नहीं माना जाता है। अध्यापक कैसे होने चाहिएं यह चर्चा में नहीं लाया जाता है तो फिर चर्चा अधूरी रह जाएगी। ऐसी अधूरी चर्चा किसी काम की नहीं। सबसे बढ़िया तो यह है कि परीक्षा पर चर्चा करते समय चारो घटकों (Points) पर ध्यान दिया जाए। चारों को चर्चा में लाया जाए। अध्यापक, विद्यार्थी, अभिभावक और वातावरण। यदि वातावरण पर चर्चा नहीं होगी तो चर्चा का बहुत कम लाभ होगा। अनकूल वातावरण बनाने में अध्यापक, विद्यार्थी और अभिभावक तीनों का हाथ होता है। इसलिए, इस लेख में की जा रही चर्चा वास्तव में लाभप्रद चर्चा है। ऐसा करके ही हम विद्यार्थियों को तनावमुक्त कर पाएंगे।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments