-वीरेन्द्र देव गौड़, पत्रकार, देहरादून
भारत का लोकतंत्र बड़े दुर्भाग्यपूर्ण मोड़ पर है। एनडीए का हिस्सा होते हुए भी जनता दल यू का किस्सा बड़ा अजीब है। तीन दिन तक तो ऐसा लगा ही नहीं कि बिहार में प्रशासन नाम की कोई चीज है। वहाँ पुलिस या तो हिंसा स्थलों से गायब थी या फिर मूकदर्शक बनी रही। भाजपा की उपमुख्यमंत्री तक पर अग्निपथ के हिंसक प्रदर्शनकारियों ने हमला बोल दिया। उपमुख्यमंत्री के अलावा अन्य भाजपाईयों पर भी हमला किया गया। जनता दल यू के किसी भी व्यक्ति पर किसी तरह का हमला नहीं हुआ। ये लोकतंत्र है या विवशता। भाजपा की विवशता के चलते नीतीश कुमार बड़े-बड़े मुद्दों पर भाजपा से अलग राय रखते हैं। जातीय जनगणना के मामले पर भी उनकी राय भाजपा से अलग है। इसी तरह अग्निपथ योजना के मामले पर भी उनकी राय अलग है। इसका अर्थ यह नहीं होता कि आप भाजपा के लोगों को पिटवा देंगे। देश की रेलगाड़ियों को आग लगवा देंगे। यह भी कहा जा सकता है कि देश की रेलगाड़ियों में आग लगाने वालों पर मेहरबान रहेंगे। देश को सोचना होगा कि क्या बिहार के नौजवान तीन पैरों वाले होते हैं। क्या ये नौजवान देश के बाकी नौजवानों से बनावट में अलग होते हैं। क्या कारण है कि बिहार में एनडीए समर्थित मुख्यमंत्री होने के बावजूद सबसे अधिक रेलगाड़ियाँ बर्बाद कर दी गई। क्या कारण है कि पश्चिम बंगाल में पत्थर जिहाद करने वालों को लेकर वहाँ की मुख्यमंत्री नरम बनी हुई हैं। ये सब लोकतंत्र के लिए खतरनाक संकेत हैं। जात-पात, क्षेत्रवाद, भाषावाद और दुष्टिकरण की नीति लोकतंत्र को कमजोर कर रही है। केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों को मिलकर प्रदर्शन के अधिकार को लेकर कानून बनाना चाहिए। ऐसा कानून कि जिसके चलते प्रदर्शनकारी सरकारी या निजी सम्पत्ति को नुकसान पहुँचाने की हिम्मत न जुटा सकें। किसी भी सड़क को एक घण्टे से ज्यादा जाम न कर सकें। जानलेवा और उग्र प्रदर्शन भारत की अर्थव्यवस्था को चौपट कर देंगे। कृषि पर तीन कानून किसानों के हित में थे। अग्निपथ योजना देश के हित में है। परन्तु ऐसे कानूनों और योजनाओं पर बवाल मचा देना देश के लिए घातक है। एनआरसी पर शाहीन बाग का गैरकानूनी धरना करना खतरनाक है। धरना और प्रदर्शन को लेकर सख्त कानून तो बनाना पड़ेगा। अन्यथा, देश में अराजकतावाद बढ़ेगा।