आगामी शनिवार को बसंत पंचमी की धूम होगी
पाँच फरवरी बसंत पंचमी का सामाजिक -धार्मिक उत्सव मनाया जाना है। बसंत पंचमी सनातन संस्कृति की अभिन्न पहचान है। यह बसंत उत्सव मौसम परिवर्तन के संकेत लेकर आता है। पेड़ों,पौधों और डालियों पर नई मुलायम छोटी-छोटी पत्तियाँ उपस्थिति का अहसास कराने लगती हैं। प्रकृति में नये फूलों की बहार आने लगती है। आम की बौर खिलने लगती है। जहाँ लीची का उत्पादन होता है वहाँ लीची के पेड़ भी बौर से सजने लगते हैं। प्रकृति हरियाली के रंग में रंगने लगती है। इस उत्सव के मायने इससे कहीं अधिक हैं। इस उत्सव का संबन्ध देवी सरस्वती से भी है। सरस्वती को विद्या, संगीत और बुद्धि की देवी माना जाता है। प्राचीन साहित्य में देवी सरस्वती को वाग्देवी, शारदा, भारती, वीणापाणी, तुम्बरी और सर्वमंगली के नाम से पुकारा जाता था। देवी सरस्वती को आदि शक्ति के तीनगुणों से सम्पन्न विराटता का अभिन्न अंग भी माना जाता है। इन्हें ब्रह्म पुत्री भी कहा जाता है। इस दिन पीले वस्त्र पहनने की परम्परा है। माँ शारदा की पूजा पीले वस्त्र पहन कर ही की जाती है। माँ से करबद्ध होकर प्रार्थना की जाती है कि वे अज्ञानता को दूर कर मन मस्तिष्क में ज्ञान का प्रकाश भर दें। असत्य के रास्ते से सत्य की ओर ले जाएं। मृत्यु के बजाए अमरत्व का मार्ग प्रशस्त करें। ऋतुराज बसंत की सभी प्रतिक्षा करते हैं। चारों ओर धूमधाम से तैयारियाँ की जाती हैं। पीले सरसों के खेत लहलहा उठते हैं। धरती प्रकृति के नये आभूषण धारण करने लगती है। सब जगह फूलों की सुगन्ध फैल जाती है। इस उत्सव को मौर्यकाल में भी बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता था। गुप्तकाल में तो (during gupta rulers) बसंत उत्सव को बहुत अधिक श्रद्धा भाव से (deep reverence) मनाया जाता था। इस पावन बेला पर लोग गंगा एवं अन्य पवित्र नदियों और सरोवरों में डुबकी लगाकर पुण्य प्राप्त करते हैं। सभी श्रद्धालुओं को (devotees) बसंत पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं। -virendra dev gaur
basant panchmi the great festival of socio-religious reverence
RELATED ARTICLES