-सावित्री पुत्र वीर झुग्गीवाला (वीरेन्द्र देव), पत्रकार,देहरादून
भारत के शहर-शहर बाढ़ का पानी प्रलय मचा रहा है। शहरों की गलियों और मोहल्लों में नदियाँ बह रही हैं और झीलें बन गई हैं। राजस्थान के कुछ शहरों में भी यही दुर्दशा है और आने वाले दिनों में इसी दुर्दशा की आशंका बरकरार है। गुजरात बाढ़ पीड़ित है। यहाँ के नगरों में गली-गली, सड़क-सड़क पानी का साम्राज्य पसरा हुआ है। घरों में पानी घुस गया है। घरों के अन्दर और घरों के बाहर एक जैसा नजारा है। लोग घबराए हुए हैं। क्योंकि ऐसे हालात में मकानों की बर्बादी तो होती ही है। घरों का सामान भी तबाह हो जाता है। हमारे देश में गाँव तेजी से कस्बे बन रहे हैं और कस्बे तेजी नगर बनते जा रहे हैं। यह विकास का पैमाना है मगर नगरों में जल निकासी की व्यवस्था चरमराई हुई है। सही मायने में जल निकासी की व्यवस्था है ही नहीं । आधी अधूरी व्यवस्था किसी काम की नहीं होती है। चण्डीगढ़ और बंगलौर को छोड़ कर शायद ही भारत का कोई नगर नियोजन के तहत अस्तित्व में आया हो। वर्षा का पानी तभी गलियों और मोहल्लों में जमा होता है जब नालियों की सुचारू व्यवस्था ना हो या फिर नालियों को विधिवत साफ ना किया जाए। देहरदून भी ऐसा ही एक नगर है जहाँ मात्र दो घंटे की भारी वर्षा शहर को जलमग्न कर देती है। शहर में जल निकासी की व्यवस्था है ही नहीं। कहीं पर थोड़ी बहुत नालियाँ बनी हैं तो कुछ दूरी पर कोई नाली ही नहीं होती। लोग अपने घरों और दुकानों का कचरा इन्हीं नालियों में डालते रहते हैं। लिहाजा, थोड़ी बहुत नालियाँ वर्षा के पानी को बहाकर ले जाने लायक नहीं होतीं और पानी सड़कों और गलियों में जमा हो जाता है। थोड़ी देर और वर्षा हो तो पानी घरों में घुसने लगता है। यही स्थिति गुजरात के नगरों की है। यही स्थिति महाराष्ट्र के नगरों की है। कुल मिलाकर भारत में नाली प्रबन्धन बहुत निकम्मा है। नगर निकायों को इस निकम्मेपन से बाहर आना होगा। इन्हें काम करना होगा और सम्बन्धित विभागों की सहायता से नगरों और उपनगरों की जल निकासी व्यवस्था को कायम करना होगा। हमारे देश के नगर निकाय अपने कर्तव्यों को लेकर सजग नहीं हैं। नाली व्यवस्था ही किसी भी नगर की असली पहचान है। इसके आलावा सड़क व्यवस्था सुचारू होनी चाहिए। नगर की सड़क व्यवस्था और जल निकासी व्यवस्था एक सिक्के के दो पहलू हैं।
भारत के शहरों में बाढ़
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