-वीरेन्द्र देव गौड़, पत्रकार, देहरादून
साभार-नेशनल वार्ता ब्यूरो-
शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद महाराज के शिष्य अविमुक्तेश्वरानंद का आक्रोश बाहर आ ही गया। मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा मंदिर में वे क्रोधित हो गए। श्री राम के मंदिर में उन्होंने साईं को विराजमान पाया। यह उनके लिए असहनीय हो गया। उन्होंने अपने शिष्य को डाँट लगाई। उन्होंने कहा की राम के मंदिर में साईं क्यों। साईं को हटाकर मंदिर को पवित्र करो अन्यथा वे मंदिर से बहिरगमन कर जाएंगे। लिहाजा, बताया जा रहा है कि राम के मंदिर से साईं को हटा दिया गया। अविमुक्तेश्वरानंद जी कहना है कि जिस साईं को लेकर पता नहीं कि उसका असली नाम क्या है। उस व्यक्ति को उसके मरने के बाद चमत्कारों की कहानी सुनाकर भगवान मानना कहाँ का तर्क है। उन्होंने गुस्से में अपने शिष्य को मंदिर को पवित्र करने का आदेश दिया। अविमुक्तेश्वरानंद जी का कहना है कि जिसे लोग साईं कहकर पूज रहे है वह किसी जमाने में पिण्डारी था। पिण्डारी लोग डकैती का धंधा करते थे। लूट-पाट और हत्याएं उनका रोजमर्रा का काम था। इतिहास में भी साक्ष्य हैं कि दुर्दांत पिण्डारियों से अंग्रेज तक भयभीत रहते थे। अविमुक्तेश्वरानंद के अनुसार साईं बाबा कहा जाने वाला व्यक्ति पिण्डारी डाकू था। उसके माथे पर घाव का निशान था जिसे वह कपड़े से ढाँपे रखता था। उन्होंने मीडिया से बात करते हुए स्पष्ट किया कि इस व्यक्ति को कुछ लोगों ने चमत्कार का नाम देकर कमाई का जरिया बना दिया है। उसके मंदिरों से आने वाले चढ़ावे का जिक्र तो मीडिया में होता रहता है परन्तु कभी किसी ने आँकड़े देकर नहीं बताया कि उसको जपने वाले किन-किन लोगों का उद्धार हुआ। अविमुक्तेश्वरानंद जी के अनुसार वह एक आम आदमी था जो मर चुका था और उसकी पूजा करना भूत की पूजा करने के समान है। राम और कृष्ण के मंदिरों में ऐसे साईं का क्या काम। कुछ साल पहले भी यह मामला मुद्दा बना था। इसके विरोधियों ने जोर देकर कहा था कि साईं के बाद राम लगाना राम का अपमान है। यह अपमान सहन नहीं किया जा सकता। राम को इस तरह नीचा दिखाना सचमुच निंदनीय है। कहाँ भगवान राम कहाँ एक मामूली व्यक्ति जो भिखारी के रूप में भी प्रचारित किया जाता है। इसमें दो मत नहीं कि भगवान राम और भगवान कृष्ण से भारतीयों को विमुख करने के लिए इस देश में बहुत पहले से षड़यंत्र चल रहे हैं। मुम्बई की फिल्म इंडस्ट्री इस षड़यंत्र में शामिल है। समय आ गया है कि भगवान राम, भगवान कृष्ण और भगवान शंकर को नीचा दिखाने वालों का जबरदस्त विरोध किया जाए। हम अपनी सनातन पराम्पराओं से समझौता नहीं कर सकते। अगर हम नरम पड़ गए तो हमारी आने वाली पीढ़ियाँ भारतीयता से वंचित हो जाएंगी। भारत के विरूद्ध सदियों से चल रहे षड़यंत्र सफल हो जाएंगे। ऐसी स्थिति में भारत समाप्त हो जाएगा। अविमुक्तेश्वरानंद जी के आक्रोश को हमें श्रद्धा भाव से समझना पड़ेगा। न्यूज चैनलों को विज्ञापन-रोग से ऊपर उठकर विमर्श करना पड़ेगा। कुछ लोगों का यह भी दावा है कि यह व्यक्ति मुसलमान था। जिसने अपना मजहब छिपाया। अविमुक्तेश्वरानंद जी भी इसी तथ्य की ओर इशारा कर रहे हैं कि जिस व्यक्ति का अता-पता मामूल नहीं उसे राम और कृष्ण के मंदिरों में टाँग पर टाँग रखे विराजित दिखाया जाता है। यह सनातन परम्परा का घोर अपमान है।