-सावित्री पुत्र वीर झुग्गीवाला (वीरेन्द्र देव)
तेगबहादुर मार्ग स्थित सागर गिरी आश्रम में 25 सितम्बर से जिस दुर्गा पूजा समारोह का श्रीगणेश हुआ था उसका सुखद समापन बीते दिवस 5 अक्टूबर के दिन पूरा हुआ। इस समारोह में क्षेत्र के लोगों ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। बंगाली माता बहनों और भाइयों ने हर साल की तरह ना केवल इस दुर्गा पूजा में पूरे उत्साह के साथ भागीदारी की बल्कि दुर्गा पूजा में बंगाली परम्पराओं का समावेश करके धार्मिक समारोह को और अधिक रोचक बना दिया। जूना अखाड़ा के परम प्रतिष्ठित महात्मा अनुपमानंद गिरी महाराज इस पूरे धार्मिक समारोह का नेतृत्व कर रहे थे और सच कहें तो एक सामान्य और समर्पित कार्यकर्ता की तरह शुरू से अंत तक जुटे रहे। बीमारी का प्रकोप भी आया किन्तु अनुपमानन्द गिरी महाराज प्राणपण से जुटे रहे और समारोह को धार्मिक भव्यता प्रदान की। अनुपमानंद गिरी महाराज ने एक कन्या की शादी का पवित्र कार्यक्रम भी सम्पन्न किया। महाराज ने सागर गिरी महाराज आश्रम के प्रांगण में न केवल अपने आश्रम के खर्चे से भव्य जलरोधी पण्डाल बनवाया बल्कि कई तरह से समारोह को आर्थिक आशीर्वाद भी प्रदान किया। उनकी इस समर्पण भावना से आसपास के श्रद्धालु इस बात को समझ रहे हैं कि अनुपमानन्द गिरी महाराज क्यों सागर गिरी आश्रम की रक्षा करना चाहते हैं और इस धर्म कार्य के लिए संघर्षरत रहना चाहते हैं। बहरहाल, परमपूज्य व्यास जी शिवोहम महाराज भी अनुपमानंद गिरी महाराज के साथ इस धार्मिक समारोह में शुरू से अंत तक विराजमान रहे। हालाँकि, बीमारी के प्रकोप से वे भी नहीं बच सके और तीन दिन अस्पताल भर्ती रहे। जिसके कारण सागर गिरी आश्रम में उनके द्वारा प्रस्तावित परम पूज्य देवी भागवत में कुछ व्यवधान अवश्य आया किन्तु अनुपमानंद गिरी महाराज ने स्वयं भी थोड़ी बहुत अस्वस्थता के बावजूद सागर गिरी आश्रम मंदिर में भजन कीर्तन जारी रखा और क्षेत्र के श्रद्धालुओं को धर्मरत रखा। यही नहीं महाराज जी बीच-बीच में व्यास जी की दुखद अनुपस्थिति में प्रवचन भी करते रहे। इस तरह दुर्गा समारोह बहुत अच्छे वातावरण में हर्षोल्लास के साथ सम्पन्न हुआ। इस भव्य कार्यक्रम की शुरूआत 25 सितम्बर के ब्रह्ममुहूर्त में बड़े धूमधाम से सम्पन्न हुआ था। माता के भक्तगण गाजेबाजे के साथ श्री सिद्धेश्वर महादेव मंदिर के समीप तरूण विहार में केला समारोह में शामिल होने गए थे। बंगाली धार्मिक रीति का पालन करते हुए केले के गुच्छे को पावन मंत्रों के बीच उतारा गया। साथ में शंखनाद भी होता रहा। शंखनाद करने वाले स्वयं अनुपमानंद गिरी महाराज ही थे। पूज्य व्यास जी शिवोहम बाबा भी इस धर्म कर्म में विराजमान थे। 1 अक्टूबर को महाषष्टी पूजा, 2 अक्टूबर के दिन महासप्तमी पूजा, 3 अक्टूबर के दिन महाअष्टमी पूजा, 4 अक्टूबर के महानवमी पूजा और 5 अक्टूबर महादशमी पूजा का विधिवत धार्मिक संस्कारों के साथ धूमधाम से समापन हुआ। 3 अक्टूबर के दिन माँ का जागरण, 4 अक्टूबर के दिन भव्य भण्डारा और सभी धर्मकर्म सम्पन्न हुए। माता की प्रतिमा के विसर्जन के लिए इस बार श्रद्धालु हरिद्वार माँ गंगा की शरण में गए और वहाँ धार्मिक श्रद्धा के साथ पवित्र विसर्जन का पुण्य लाभ अर्जित किया।