-सावित्री पुत्र वीर झुग्गीवाला (वीरेन्द्र देव), पत्रकार,देहरादून
अब उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने लाठी उठा ली है। इस लाठी से वे रिश्वतखोरों और भ्रष्टाचारियों को पीटेंगेे। कानून की यह लाठी किसी पर भी पड़ सकती है। भाजपाइयों पर भी पड़ सकती है। कांग्रेेसियों पर तो पड़ेगी ही। वे तो भ्रष्टाचार को अपना जन्म सिद्ध अधिकार मानते आए हैं। अच्छी बात है। रिश्वतखोरी अगर राज्य से मिट जाए तो जिस तरह का राज आएगा उसे राम राज्य ही कहा जाएगा। भ्रष्टाचारी राज को तो रावण राज कहा जाएगा। गुजरे 20 सालों में विधानसभा में भर्तियों को लेकर धांधलियों का अनवरत सिलसिला चला है। मुख्यमंत्री धामी इसी सिलसिले पर वार करना चाहते हैं। अभी तक लगभग दो दर्जन भ्रष्टाचारियों को पकड़ लिया गया है। ये भ्रष्टाचारी विधानसभा में हुए भर्ती घोटालों में शामिल रहे हैं। भाजपा के नेता पूर्व विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल भी संदेह के घेरे में हैं। सबसे ज्यादा संदेह के बादल पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्री कुंजवाल पर मँड़रा रहे हैं। गोविन्द सिंह कुंजवाल कांग्रेस के नेता हैं। इन पर गंभीर आरोप लग रहे हैं। आरोपों के अनुसार इन्होंने दर्जनों कुंजवालों को केवल कोरे कागज पर चिट्ठी लिख कर भर्ती करवाया है। यानी धांधली में किसी तरह का कोई भय और संकोच नहीं। इसे कहते हैं धड़ल्ले से बेईमानी करना। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की लोग जमकर तारीफ कर रहे हैं। क्योंकि वे कह रहे हैं कि इस भ्रष्टाचार में कोई भी नहीं बख्शा जाएगा। चाहे वह किसी भी दल का हो और कितना ही लम्बे हाथों वाला क्यों ना हो। सही बात है। भ्रष्टाचार पर किसी को भी नहीं बख्शा जाना चाहिए। भ्रष्टाचार से कई तरह के अपराध पैदा होते हैं। समाज में तनाव बढ़ता है। समाज का पतन होता है और राष्ट्र की प्रगति पर बहुत बुरा असर पड़ता है। मुख्यमंत्री को इस मामले में प्रधानमंत्री मोदी की नीति पर चलना चाहिए। ना खाऊँगा और ना खाने दूँगा। इसी नीति पर अमल करने से देश का उद्धार होगा। देवभूमि उत्तराखण्ड में तो विधानसभा में क्या चप्पे-चप्पे पर ईमानदारी का राज होना चाहिए। पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं। हालाँकि कोई पुख्ता प्रमाण सामने नहीं आया है। लेकिन भाई-भतीजावाद से श्री रावत दूर नहीं रह पाए थे।