-सावित्री पुत्र वीर झुग्गीवाला (वीरेन्द्र देव), पत्रकार,देहरादून
पूज्य सागर गिरी महाराज ने भारत की स्वतंत्रता के कुछ साल बाद तेगबहादुर मार्ग राजीव नगर रिस्पना पुल से सटे लगभग साढे़ पाँच बीघा जमीन पर अपना डेरा डाला। यहाँ आश्रम की स्थापना कर इसे अपनी तप स्थली बनाया। शमशेर बहादुर जी सागर गिरी महाराज को दुधली के जंगलों से यहाँ लाये थे। शमशेर बहादुर सागर गिरी महाराज के जप और तप से प्रभावित थे। वे चाहते थे कि सागर गिरी महाराज जैसे महात्मा देहरादून पधार कर यहाँ के लोगों को धन्य कर सकते थे। समय आने पर यह सिद्ध भी हुआ कि सागर गिरी महाराज के जप तप की देहरादून में धूम मच गई। लोग उनकी यज्ञशाला की भस्म यानी पवित्र राख का तिलक लगवाने को लालायित रहने लगे। उनकी यज्ञशाला की पवित्र राख लोगों के जीवन में चमत्कार कर देती थी। आज भी कम से कम तीन लोग सौभाग्य से हमारे बीच विराजमान हैं जो उनके प्रिय शिष्य रहे हैं। तब ये लोग नौजवान थे। आज ये लोग 70 और 80 की उम्र पार कर चुके हैं। कोई भी पाठक इनसे मिल कर यहाँ किए जा रहे दावे की पुष्टि कर सकता है। ये लोग सागर गिरी आश्रम के आस पास ही रहते हैं। सवाल यह है कि जिस पुण्य भूमि को सागर गिरी महाराज ने अपने तप से तपाकर ऋषि स्थली बना दिया था क्या ऐसी पुण्य जमीन को लालची व्यापारियों के हाथ जाने दिया जाए। कुछ लोग इस जमीन को हड़पना चाहते हैं। वे खुद को ट्रस्टी बताकर इस जमीन का गबन कर देना चाहते हैं। इस जमीन पर व्यापारिक संस्थान चलाने के सपने देख रहे हैं। लिहाजा, ये लोग पिछले कई सालों से षड़यंत्र करने में जुटे हुए हैं। सागर गिरी महाराज आश्रम के आसपास के लोग चिंताग्रस्त हैं। इनका कहना है कि जब यह जमीन सागर गिरी महाराज को दान में दे दी गई थी तो उनकी इच्छा के अनुसार इस पुण्य भूमि को केवल और केवल धार्मिक और सामाजिक कामों के लिए ही उपयोग में लाया जाना चाहिए। इस जमीन को व्यवसाय के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। अब ऐसे लोग जो कब्जा करने के लिए लालायित लोगों से परेशान थे इन्हें आशा की किरण दिखाई दी है। महंत अनुपमा नंद गिरी और श्री शिवोहम बाबा अमिता नंद जी ऐसे दो महात्मा जो पूज्य सागर गिरी महाराज के आश्रम की रक्षा के लिए सीना तान कर आ खड़े हुए हैं। इन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि इस धर्मयुद्ध में पूरी ताकत से लड़ा जाएगा। सागर गिरी महाराज के निर्वाण के बाद जो भी गलत हुआ है वह सब ठीक किया जाएगा। ये दोनों संत भी सागर गिरी महाराज की तरह जूना अखाड़े से सम्बद्ध हैं। जूना अखाड़े की कीर्ति से कौन परिचित नहीं होगा। इस अखाड़े का इतिहास गवाह है कि ये संत गलत और अधर्म के आगे कभी नहीं झुकते। इन दोनों संतों का स्थानीय लोगों को अश्वासन है कि आश्रम की रक्षा होगी और इस आश्रम को जन-जन की भलाई के लिए समर्पित रखा जाएगा न कि व्यवसाय चलाने के लिए। लिहाजा, यह धर्मयुद्ध निर्णायक मोड़ की ओर अग्रसर हो रहा है।