-वीरेन्द्र देव गौड़ एवं एम एस चौहान
तुलसी पीठाधीश्वर रामभद्राचार्य जी का प्रण है कि वे पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर लेकर रहेंगे। चित्रकूट के रामभद्राचार्य ऐसे संत हैं जिन्हें भारतीय शास्त्रों के डेढ़ लाख श्लोक कंठस्थ हैं। भद्राचार्य जी ऐसे कथावाचक हैं जो व्यासपीठ से राष्ट्रीय एकता की दहाड़ लगाते हैं। उनकी दहाड़ में राष्ट्रप्रेम कूट-कूट कर भरा होता है। ये वही भद्राचार्य हैं जिनके वक्तव्य ने सुप्रीम कोर्ट में रामलला के पक्ष में निर्णय का मार्ग प्रशस्त किया था। इन्होंने लगभग साढ़े चार सौ शास्त्रीय प्रमाण दिए थे और सिद्ध किया था कि भगवान राम अयोध्या में सरयू के दक्षिण भूभाग पर जन्मे थे जहाँ पर बाबरी ढांचा खड़ा कर दिया गया था। इनके शास्त्रीय तर्कों के आगे सुप्रीम कोर्ट श्रीराम के पक्ष में झुक गया था। प्रयागराज हाईकोर्ट ने भी महाराज का पक्ष सुना था। हतप्रभ कर देने वाली बात यह है कि रामभद्राचार्य जी की भौतिक आँखें नहीं हैं। दो माह की आयु में ही ये भौतिक दृष्टि खो चुके थे। ये ऐसे विरले संत हैं जो विधिवत पढ़े लिखें भी हैं और हर कक्षा में इनके 99 प्रतिशत अंक आते थे। इन्हें भारत सरकार ने पद्म विभूषण सम्मान भी दिया है। इन्हें ढेरों सम्मान प्राप्त हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि ये रामनुजाचार्य परम्परा के संत हैं। ये वशिष्ठ गोत्र के ब्राह्मण हैं। रघुवंश के कुल गुरु महर्षि वशिष्ठ थे। ये उन्हीं के गोत्र के हैं। रामभद्राचार्य जी श्रीराम के अनन्य भक्त हैं। ये अपनी कथाओं में पूरी ताकत से कहते हैं कि राम ही राष्ट्र हैं। राम ही राष्ट्र के लिए आदर्श हैं। श्रीराम के बिना राष्ट्र की एकता संभव नहीं। पूरे संसार में ऐसा कोई नहीं जो शास्त्रार्थ में इनका सामना कर सके। इन्होंने पहले ही घोषणा कर दी थी कि योगी जी फिर जीतेंगे। योगी जी ही टेंट से रामलला को गोदी में उठा कर दूसरे स्थल पर प्रतिष्ठित करने को ले गए थे। यह सौभाग्य उन्हें ही प्राप्त हुआ था। इस पावन स्थल से रामलला को मंदिर में ले जाया जाएगा जो निर्माणाधीन है। रामभद्राचार्य जी राम के चरित्र को आज के समय से जोड़ कर बहुत अच्छी तरह प्रस्तुत करते हैं ताकि नौजवानों को प्रेरणा मिल सके। ये ऐसे संत हैं जो दावा करते हैं श्रीराम पूर्ण ब्रह्म परमेश्वर थे। उनके आदर्श पर चल कर ही भारत का उत्थान हो सकता है। रामभद्राचार्य जी कथा वाचकों के लिए प्रेरणा के स्रोत हैं। हो यह रहा है कि कथा वाचक भी सेक्युलर लाइन पकड़ लेते हैं और लोगों को भ्रम में डाल देते हैं। रामभद्राचार्य जी की यही विशेषता है कि वे स्पष्टवादी और निर्भीक हैं। राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री तक इनसे फोन पर वार्ता कर प्रेरणा लेते हैं। यह बताना भी आवश्यक हैं कि स्वयं को हिन्दू शेर कहने वाला धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री इनका प्रिय शिष्य है। जो मजाक में अक्सर कहा करते हैं कि गुरु मेहरबान तो गधा पहलवान। बागेश्वर धाम के युवा संत धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री इन्हीं से प्रेरित हैं और रामभद्राचार्य जी इन्हें अपना सुयोग्य शिष्य कहते हैं। इसीलिए तो धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री दहाड़ कर कहते हैं कि वे भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित होते हुए देखना चाहते हैं। श्रीराम इन दोनों संतों के अभीष्ट आराध्य हैं। भद्राचार्य जी जैसा सत्यवादी कथावाचक दुर्लभ है। भद्राचार्य जी ने अपने निजी प्रयासों से 2001 में दृष्टिबाधितों के लिए विश्वविद्यालय की स्थापना की। भद्राचार्य जी तुलसीपीठ के प्रमुख हैं लेकिन वे भारत के ऐसे सर्वमान्य संत हैं जिनके आगे कोई भी ज्ञान में टिक नहीं सकता।