साभार-नेशनल वार्ता ब्यूरो-
आतिशी जीत के लिए बधाई। ऐसी ही जीत का इंतजार था सबको। लेकिन जीत का प्रसाद केवल कुछ को ही क्यों सबको क्यों नहीं। सबको नहीं तो किसी को नहीं। यह विज्ञापनीय भेदभाव उचित नहीं। आपने विपक्षियों की जमानत जब्त करवा दी। उनकी साढ़े चार साल के लिए बोलती बंद करवा दी। यहाँ तक तो सही है लेकिन आपके इस पराक्रम की खुशी तो सभी को है। चाहे बड़ा अखबार हो या छोटा। आपके सम्बन्धित विभाग को विवेक से विचार करना चाहिए। अगर धन का अभाव है तो कोई बात नहीं। हम छोटे अखबार वाले बड़ा दिल रखते हैं। हम हरहाल में आपके साथ हैं। आपसे उम्मीद है कि आने वाले साढ़े चार साल में आप मौलिकता का परिचय दे पाएंगे। खासतौर पर उत्तराखण्ड के धर्माटन और पर्यटन के साथ-साथ साहसिक पर्यटन को भी बढ़ावा दे पाएंगे। योग और प्रकृति के संयोग का कमाल दिखाकर सौन्दर्य प्रेमी पर्यटकों को बारहमासा पर्यटन के लिए प्रेरित कर पाएंगे। हम छोटे अखबार वाले आपके लिए वह काम करते रहते हैं जो आपके सलाहकारों के बूते की बात नहीं। बहरहाल, आपके सलाहकार खुशहाल रहें मगर आपको ऐसी राय दें जिसमें पूरे राज्य का हित हो। उत्तराखण्ड के पर्यटन के विकास के लिए आप लोग एक काम तो अच्छा कर रहे हैं। मुख्य मार्गों के आसपास के गाँवों को पर्यटकों की आश्रय स्थली बनाने का काम सराहनीय है। यह काम जोर शोर से चलते रहना चाहिए। इसके साथ-साथ इन गाँवों के प्राकृतिक सौन्दर्य को निखारने के लिए वन-बगीचे लगाए जाएं। पानी के प्राकृतिक स्रोतों को संरक्षित और संवर्धित किया जाए। पर्यटकों को प्रसन्न करने के लिए उत्तराखण्ड की सांस्कृतिक धरोहर का भरपूर उपयोग किया जाए। बम्बईया फिल्मों की बेढंगी संस्कृति से बचा जाए। उत्तराखण्ड के लोक गायकों, वाध्य यंत्र साधकों और अभिनेताओं को ऐसे पर्यटन गाँव में बसाया जाए ताकि इनकी आमदनी हो और पूरे देश से आए पर्यटक उत्तराखण्ड की आर्य संस्कृति का आनन्द उठा सकें। मूल रूप से उत्तराखण्ड की संस्कृति वैदिक परम्परा से जुड़ी है। इन पर्यटन गाँव में योग के साधन भी जुटाए जाएं। ताकि पर्यटक स्वास्थ लाभ कर सकें और प्रसन्न होकर लौटें। इसके साथ-साथ पर्यटन गाँवों में उत्तराखण्ड के कुटीर उद्योग को भी बढ़ावा देना जरूरी है। -वीरेन्द्र देव गौड़, पत्रकार, देहरादून