-सावित्री पुत्र वीर झुग्गीवाला (वीरेन्द्र देव गौड़), एम.एस.चौहान,देहरादून
हल्द्वानी से लगा काठगोदाम कब्जाधारियों की जकड़ में है। यहाँ कब्जाधारी कई पीढ़ियों से जमे हुए हैं। वोट के लालची राजनीतिज्ञों ने इन्हें तरह-तरह से संरक्षण दिया। ऐसे राजनीतिक दलोें की पहचान होनी चाहिए जो सरकारी जमीन पर कब्जे को बढ़ावा देते हैं। कब्जाधारियों के साथ-साथ शासन और प्रशासन भी बराबर का दोषी है। यही नहीं रेलवे विभाग भी दोषी है। रेलवे विभाग के पास क्या निगरानी तंत्र नहीं है। रेलवे विभाग को अपनी जमीन पर कब्जा करने वालों को शुरू में ही सबक सिखा देना चाहिए। 40-50 साल से रेलवे विभाग सोया रहा और अब हाईकोर्ट जा पहुँचा। हाईकोर्ट ने कब्जे को आपत्तिजनक घोषित कर कब्जाधारियों को भगाने का आदेश दे दिया। अब मामला सुप्रीम कोर्ट में चला गया है। सुप्रीम कोर्ट भी इस फैसले पर किसी तरह की आपत्ति नहीं जता सकता है क्योंकि जिस जमीन पर हजारों लोग काबिज हैं वह रेलवे विभाग की बताई जा रही है। यदि पूरी जमीन रेलवे विभाग की है तो सुप्रीम कोर्ट क्या कर सकता है। अधिक से अधिक सुप्रीम कोर्ट यही कहेगा कि कब्जाधारियों को कुछ और मोहलत दे दी जाए और इनके रहने की तब तक अस्थाई व्यवस्था कर दी जाए जब तक ये अपनी स्थाई व्यवस्था नहीं कर लेते। इससे अधिक तो सुप्रीम कोर्ट कुछ नहीं कर सकता है। गैर कानूनी काम को कोई भी कोर्ट जायज कैसे ठहरा सकता है। लेकिन राजनीतिज्ञों को केवल राजनीति सूझ रही है। हरीश रावत का कहना है कि उत्तराखण्ड सरकार की मिलीभगत से रेलवे विभाग लोेगों पर अत्याचार कर रहा है। उधर जिहादी महबूबा मुफ्ती अपना वही घिसापिटा राग अलाप रही है कि मुसलमानों के साथ अत्याचार हो रहा है। ऐसे घोर अवसरवादी राजनीतिज्ञों को यह जानने में कोई रूचि नहीं है कि वहाँ हिन्दू भी रहते हैं। इसी घटिया और नीच राजनीति के कारण ना केवल देश का विघटन हो रहा है बल्कि देश के दुश्मनों को देश के खिलाफ प्रचार करने का मौका मिल जाता है। यदि सुप्रीम कोर्ट ने नैनीताल हाई कोर्ट के फैसले को पूरे तरीके से सही ठहराया तो हल्द्वानी से लगे काठगोदाम मेें शाहीनबाग जैसा नजारा देखने को मिल सकता है। यदि ऐसा हुआ तो उत्तराखण्ड में शांति भंग होने का खतरा पैदा हो जाएगा। जो भी हो इस समस्या का निपटारा अवश्य होना चाहिए। सरकारी जमीन पर कब्जे का अधिकार किसी को नहीं है। हिन्दू को भी नहीं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी कह रहे हैं कि वे इस मामले में पक्षकार नहीं हैं। उन्हें हाई कोर्ट के आदेश का पालन करना है। लोगोें को सच स्वीकार करना चाहिए। आज सुप्रीम कोर्ट का क्या फैसला आता है। इसी पर आगे की कार्रवाई टिकी हुई है। वैसे, जिला प्रशासन कार्रवाई के लिए तैयार है।
क्या काठगोदाम कब्जाधारियों से मुक्त होगा ?
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