उत्तराखण्ड की आग को आग लगाओ
साभार -नेशनल वार्ता ब्यूरो
उत्तराखण्ड के जीवन का आधार जल सम्पदा और वन सम्पदा है। इसी आधार पर हम यहाँ की अर्थव्यवस्था को निखारे तो धमाल हो जाए। चार धाम और तमाम अज्ञात धाम अगर सरकार की सूची में शामिल हो जाएं तो कमाल ही कमाल। इसीलिए, हमें उत्तराखण्ड की वन सम्पदा को अपने शरीर का अंग मानकर चलना है। यानि, उत्तराखण्ड के वनों के एक-एक पेड़ की हमें रक्षा करनी है। उत्तराखण्ड के एक-एक वन्य पशु की हमें रक्षा करनी है। हमें उत्तराखण्ड के वनों से लगे गाँवों के लोगों को यह एहसास दिलाना है कि वन उनके है। तब जाकर वनों को आग से बचाया जा सकेगा। इसके अलावा वनों को लेकर ऐसे गाँवों के लोगों की साझेदारी के साथ नियम कानून बनाने पड़ेंगे। वनों में आग लग जाने पर वनों से लगे ग्रामीणों को आग बुझाने में भूमिका अदा करनी पड़ेगी। इसके लिए उन्हें प्रशिक्षित करना पड़ेगा। साथ में ऐसे प्रशिक्षित लोगों को प्रति माह मानदेय दिया जाए। आग बुझाने के काम में लगने वाले ग्रामीण इस तरह एक प्रकार का रोजगार भी पा लेंगे और वे वनों को अपनी सम्पदा समझेंगे। वे वनों से भावनात्मक रूप से जुड़ जाएंगे। जंगलों में आग अपने आप नहीं लगती। कौन सी साइन्स है जो इतनी नादान है और कहती है कि आग खुद-ब-खुद लग जाती है। आग खुद-ब-खुद कभी नहीं लगती। कहीं भी नहीं लगती। जंगलों की आग आदमी की खुरापातों का अंजाम है। वन विभाग के कर्मचारियों और अफसरों के अलावा गाँवों के स्वयंसेवक भी नियुक्त जाएं। जिन्हें मानदेय देने की बात की जा रही हैं। ऐसा करके ही हम उत्तराखण्ड की वन सम्पदा को बचा पाएंगे और साथ में निरपराध वन्यजीवों की भी रक्षा कर पाएंगे। उत्तराखण्ड को पूरे भारत के लिए नहीं अपितु पूरे संसार के लिए उदाहरण बनना होगा। उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री को अगर प्रदेश को अग्रिम पंक्ति में लाना है तो मौलिकता का परिचय तो देना ही होगा। वही मौलिकता जिसका परिचय आदित्यनाथ योगी दे रहे हैं। दोनों की जन्म भूमि उत्तराखण्ड ही है फिर यह अन्तर कैसा? -सावित्री पुत्र वीर झुग्गीवाला (वीरेन्द्र देव), पत्रकार,देहरादून।